अतिरिक्त >> गीत से नवगीत गीत से नवगीतशुभा श्रीवास्तव
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गीत से नवगीत
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यह जो डॉ. शुभा श्रीवास्तव की पुस्तक ‘गीत से नवगीत’ आपके हाथों में है, यह उनका एक गवेषणात्मक शोधग्रन्थ है, जिसमें उन्होंने गीत से नवगीत तक के प्रस्थान बिन्दुओं को तथ्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है। गीत तो एक रूढ़ शब्द हैं, वेद की ऋचाएं भी गीत हैं, लोकांचल में चक्की पीसती हुई स्त्रियों का गायन भी गीत है, विवाह मण्डप के नीचे बन्ना-बन्नी भी गीत हैं, प्रसाद-पंत, महादेवी की रचनाएं भी गीत हैं और हिन्दी फिल्मों में सिचुएशन पर आधारित धुनों के अर्थहीन शब्द संयोजन भी गीत ही हैं। इस बहुआयामी विधा को साहित्य में जिस रूप में देखा गया है, वह रूप पंत और महादेवी की रचनाएं या फिर कवि सम्मेलनों में नीरज, रंग, अंचल, बच्चन, नेपाली आदि की प्रस्तुतियों पर आकर ठहरता है। इसी गीत धारा में से नवगीत का उद्भव और विकास है। इस विकास क्रम को डॉ. शुभा श्रीवास्तव ने बखूबी स्पष्ट किया है। नवगीत की पृष्ठभूमि के रूप में उन्होंने गीतिकाव्य की आदिकालीन परंपरा से लेकर भक्तिकाल, भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग एवं छायावाद तक के गीतों को छुआ है।
डॉ. शुभा के इस ग्रंथ में सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याय है—प्रमुख नवगीतकार। इस अध्याय को तीन चरणों में उन्होंने वीरेन्द्र मिश्र, शंभुनाथ सिंह और ठाकुर प्रसाद सिंह जैसे संस्थापक नवगीतकारों से लेकर एकदम नई पीढ़ी के संभावनाशील गीतकार वसु मालवीय तक की तीन पीढ़ियों से सजाया-सँवारा है।
किन्तु दुर्लभ को खोजकर लोगों के सामने प्रस्तुत करना ही तो नैतिक साहस है। यह साहस डॉ. शुभा श्रीवास्तव ने किया है। मुझे स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि अपनी गवेषणा के क्रम में डॉ. शुभा ने गीत की लरज को जिया होगा और अपने ग्रंथ में ‘प्रथम पूज्य गणपति’ की तरह स्थापित किया होगा। तभी तो इस पूरी पुस्तक में गीतलता की भावनात्मक उपस्थिति एवं नवगीत की सिद्ध उपपत्ति प्रमाणित होती है।
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